शहर से राशन लेने गया तेजा सिंह कपड़े की हट्टी वाले अपने दोस्त सेठ मंगत राम के पास रुक गया | सोचा की चलो चाय पानी पी लेंगे और तब तक आसमान में छाया बादल भी छंट जाएगा |जब वह वहां पहुंचा तो देखा की सेठ अपने नौकर को कह रहा था,” छोटू सामान अंदर संभल दे जल्दी से, बादल बहुत छा गए हैं , कहीं पूरे दिन की मेहनत पर पानी ना फिर जाए “| दूकान के अंदर बैठा तेजा सिंह सोचने लगा ” सेठ तो पूरे दिन की मेहनत पर पानी फिरने के दर से सामान अंदर रख रहा है , मैं अपनी छः महीने की मेहनत किसके सर मडूँगा जो की खुले आसमान के नीचे पकी खड़ी है | वाह !ओ मेरे दाता, तभी तो कहा जाता है कि किसान कि कुदरत के साथ किसान का बहुत गहरा रिश्ता है, अब तो भगवान् तेरे हाथ में ही डोर है, चाहे रख ले, चाहे तोड़ ले “| मन ही मन यह सोचता हुआ तेजा सिंह बारिश की बूँदें रुकने पर अपने स्कूटर को चला के गांव की तरफ बढ़ गया |
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