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एक मित्र को यह चिंता लगी रहती थी कि उसने जिस व्यापारी के साथ पन्द्रह दिन बाद मुलाकात करनी है, वह मुलाकात सफल होगी भी या नहीं, कहीं कोई गलतफहमी ओर ना बड़ जाए | उस मित्र को एकदम से ख्याल आया कि जब भी वह व्यापारी से मिलेगा, तब उस समय, हर वक्त की तरह, वाहेगुरु उसके अंग-संग ही रहेंगे, तो फिर यह गलतफहमी कैसे ब बड़ सकती है? वाहेगुरु जी दोनों तरफ से उन दोनों की मुलाकात सफल बनाने में उनकी सहायता करेंगे| जब उसको वाहगुरु की अच्छाई और सर्व व्यापकता पर यकीन, तो उसका सारा डर खत्म हो गया और वह भरोसे से उस दिन की उड़ीक करने लग गया जब उसकी उस व्यापारी से मुलाकात होनी थी, जब वह दिन आया तब उसकी मुलाकात बहुत ही कामयाबी भरी तथा अच्छी निकली, दोनों तरफ़ प्रशंसा भरा भरोसा पैदा हो गया|
पुस्तक- सर्व रोग का औखद नाम
रघवीर सिंह बीर
रघवीर सिंह बीर