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सिपी का कीड़ा जब भी खुराक खाने के लिए अपना मुंह खोलता है तब रेत का कंकर भी उसमें आ कर बैठ जाता है और उसकी कोमल त्वचा के साथ रगड़ता है| कीड़ा इस रगड़ता को नरम करने के लिए, उसके ऊपर अपने मुंह का लुबा चढ़ाता रहता है| उसके लुबा चढ़ाने के कारण, कंकर गोल और बड़ा होने लग जाता है| एक दिन इस कंकर कि बड़ा होने के कारण, साँस घुन जाने कि कारण, सिपी का कीड़ा मर जाता है, उस दिन इस कंकर से मोती का जन्म हो जाता हे|
पुस्तक- खिड़कीयां
नरिंदर सिंह कपूर
नरिंदर सिंह कपूर