चालाकी

by Gurwinder

कई बार चालाकी उलटी भी पड़ जाती है|60वें दहके की बात है हमारे गांव में से मिस्त्री का लड़का टेक सिंह फौज में भरती हुआ था| वह जिस कैंप में था वहां पर उसारी का काम चल रहा था टेक सिंह लकड़ी का काम जानता था, टेक सिंह की ज़िमेदरी बड़ी बिल्डिंग के लकड़ी के काम पर लग गई| टेक सिंह का छुट्टी आना भी जरूरी था| अफसर ने बोला काम पूरा करने के बाद ही आपको छुट्टी मिलेगी| काम ज्यादा था| टेक सिंह दिन रात लगा रहा और लगभग काम पूरा कर ही लिया था सिर्फ दो ही खिड़की और दरवाजे रह गए थे| आखिरी दरवाजे का कब्जा लगा ही रहा था| कब्जा लगाने वाली जगह को छीलना पड़ता है इसलिए के वहां पर कब्जा अच्छे से बैठ जाए और फिटेंग अच्छी सी हो जाए, टेक सिंह कब बुरा होना था कि लकड़ी कुछ ज्यादा ही छिल गई| अफसर भी पास में ही बैठा था परंतु टेक सिंह ने कब्जे के नीचे गत्ते का टुकड़ा लगाकर कब्जा बराबर कर लगा दिया| अफसर देख रहा था और उसने टेक सिंह को पूछा यह गत्ते का टुकड़ा क्यूं? टेक सिंह ने अपनी गलती छपाने के लिए बोल दिया “साहब गत्ते गधे के साथ कब्जे को जंग नहीं लगता” अफसर बोला “गुड टेक सिंह, सभी दरवाजे और खिड़कियां के कब्जे निकालकर उनके नीचे गत्ता लगा दो!!!!”

……बेचारा टेक सिंह

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