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कोशिश तो मैंने भी बहुत की थी उस बाबा जी की बहू बन जाऊं परंतु नंबरदार के घराने के साथ कोई मेल नहीं था|
एक तरफ तो पिताजी चल बसे थे और दूसरी तरफ इश्क| माताजी के आंसुओं के आगे अमृत कमजोर हो गया था| मेरे पास वक्त नहीं था अधूरी इच्छाएं थी वह भी रह गई, मन उदास हो गया|
कैनेडा से उसका कभी-कभी फोन आना बस एक झूठा साथ दिलासा देना और कहना कि माताजी का ख्याल रखा करो अब| उसके आखिरी शब्द जाते हुए की आंखों के यहां तुम आज भी मेरी रूह को छेड़ते हैं| वह अकसर बोलती थी वह, “पागल है अमृत तुम्हें कभी भी पगड़ी के साथ मैचिंग करनी नहीं आएगी|”
………आहिस्ता-आहिस्ता वक्त गुजरता चला गया मैं जितनी दिल के करीब थी उतनी ही दूर हो गई….