कुछ औरतें काफी देर से इकट्ठे होकर आपस में अपने पति देवताओं की प्रशंसा के गुण गा रही थी|
कुछ समय बाद गांव से आई सरला बोली, “मुझे समझ नहीं आती, यह स्त्रियां अपने पतियों की बुराई कैसे कर लेती हैं? मेरे घर वाले की तरफ देख लो, ना तो अक्ल है, ना ही शक्ल है, ना मुंह ना मथा जैसे जिन पहाड़ों ल्थ्था, उसका रंग कितना काला है जैसे किसी भूतनी माँ ने भट्टी में तपा कर पैदा किया हो, कंजूस इतना है कि कच्छे बनियान भी सेकंड हैंड खरीद के ले कर आता है, उसकी बगलों में से बास आती है, मुंह से भी बास आती है- मैं तो हैरान हूं, काले मुंह वाला पता नहीं कौन सी हड्डा रोड़ी से घास चर कर आता है?
रात को इतने खर्राटे मारता है कभी-कभी मेरा तो दिल करता है, इस बंदर की नाक में पेट्रोल डालकर आग लगा दूँ|धर्म से इतनी दुखी हूँ, इतनी दुखी हूँ- कि पूछो ही मत, परन्तु क्या मजाल मेरी कि मैंने कभी उसकी बुराई की हो| चोंतिस वर्ष हो गए हमारी शादी को, मुझे अपनी माँ की नसीहत अभी तक याद है, वह कहती होती थी, “बेटी, पति चाहे कितना भी कंजर क्यों ना हो, घरवाली के लिए तो वह हमेशा देखता ही होता है, देवता!”