पिता का बचपन

by Gurwinder

एक दिन एक बेटा अपने पिता को एक बड़े होटल में खाना खिलाने के लिए ले गया| उसका बुजुर्ग पिता बार-बार खाने के साथ अपने कपड़े गंदे कर रहा था और बेटा बार-बार अपने पिता के कपड़े और मुंह साफ कर रहा था| कभी बर्तन की आवाज़ सुनकर वेटर उनके पास आ जाते| बेटा वेटरों को इशारा कर वापस भेज देता था| बुजुर्ग बाप इतने अजीब ढंग से खाना खा रहा था उनके पास के टेबल पर बैठे लोगों का ध्यान उनकी तरफ आ रहा था| खाना खाने के बाद बेटा अपने पिता को प्यार से अपनी बाँहों में लेकर गाड़ी की तरफ लेकर जा रहा था के साथ ही बैठे एक व्यक्ति से रहा ना गया, और उन्होंने बोल ही दिया, “बेटा बुजुर्ग को यहाँ नहीं लेकर आना चाहिए, बल्कि इनको तो घर में ही खाना खिला देना चाहिए|” पुत्र ने बड़े ही प्यार से उनका उतर दिया, “अंकल जी जब में और मेरी बहन छोटे हुआ करते थे, तब छुट्टी के दिन हमारे पिताजी हमें इसी होटल में खाने खिलने के लिए लेकर आते थे| तब हम भी ऐसे ही किया करते थे कभी अपना मुंह गंदा करना कभी अपने कपड़े गंदे करने| कई बार तो में रोने भी लग जाता था| और कभी-कभी किसी वस्तु की जिद कर लेता था और सरे वस्तुओं को बिखेर देता था| उस वक्त भी कई लोगों का ध्यान हम पर पड़ता था, परन्तु किसी ने यह नहीं कहा था कि इन बच्चों को यहाँ नहीं लाया करो| हमारे माँ-बाप कभी भी गुस्सा नहीं हुआ करते थे, बल्कि प्यार से हमारा मुंह साफ करते थे, हमें खाना खिलाते और हमारे गंदे कपड़ों को अपने रुमाल से साफ करते थे|” अब मेरे पिता जी बुज़ुर्ग हो गए हैं, तो हमारा भी फर्ज़ बनता हे कि हम भी उनका मनोरंजन करवाएं| पुत्र का उतर सुन कर उस व्यक्ति की आँखें भर आई| उसे यह लगा मानो जैसे बच्चे का बचपन अब उसके पिता में आ गया हो|

त्रिपता ब्र्मोता,

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