उसने स्लीपर सीट बुक की हुई थी, परंतु वह मुसलमान खुद नीचे बैठा था.. सीट के ऊपर एक साफ़ कपड़ा बिछाकर उसके ऊपर एक घड़ा ढक कर रखा हुआ था, शायद इसीलिए सभी लोग उसकी तरफ एक अलग सी नजर के साथ देख रहे थे|
हिम्मत कर एक सरदार जी ने उनसे पूछ ही लिया के भाई बता दो कि इस घड़े में ऐसा क्या है जिसके सम्मान में तुम नीचे बैठे हो, आप यह सच मान कर चलना के उसके सुनाते-सुनाते मेरी आंखें नम हो गई क्योंकि जिस भावना से उसने मुझे उत्तर दिया उसने मुझे सोचने के लिए मजबूर कर दिया क्योंकि उसका उत्तर था “सिंह जी इसमें गुरु रामदास जी के पवित्र सरोवर का आब-ए-हयात (अमृत) है, क्योंकि सभी आशाओं के खत्म होने के बाद यही एक गुरु का दरबार है जिसने मेरे बच्चे को मौत के मुंह में से निकाल लिया है, यह आब-ए-हयात मैं इसलिए अपने साथ लेकर जा रहा हूं क्योंकि इसमें स्नान करने के बाद वह ठीक हो गया था|”
मेरे दिल में से उस वक्त बस यही निकला था कि धन गुरु रामदास गुरु, और यह सोचने के लिए भी मजबूर कर दिया के इन जागरूक व्यक्तियों को पता नहीं कौन सा ज्ञान है जो चार सो साल के कुर्बानियां और रक्त में भीगे इतिहास मैं किसी और सिख को नहीं हुआ|